Friday, March 5, 2010

माया क्या है ?

जय श्री राम

मोह न अंध कीन्ह केहि केही। को जग काम नचाव न जेही॥
तृस्नाँ केहि न कीन्ह बौराहा। केहि कर हृदय क्रोध नहिं दाहा॥

ग्यानी तापस सूर कबि, कोबिद गुन आगार।
केहि कै लौभ बिडंबना, कीन्हि न एहिं संसार॥
श्री मद बक्र न कीन्ह केहि, प्रभुता बधिर न काहि।
मृगलोचनि के नैन सर, को अस लाग न जाहि॥

जोबन ज्वर केहि नहिं बलकावा। ममता केहि कर जस न नसावा॥
चिंता साँपिनि को नहिं खाया। को जग जाहि न ब्यापी माया॥
यह सब माया कर परिवारा। प्रबल अमिति को बरनै पारा॥
सिव चतुरानन जाहि डेराहीं। अपर जीव केहि लेखे माहीं॥

दोहा- ब्यापि रहेउ संसार महुँ माया कटक प्रचंड॥
सेनापति कामादि भट दंभ कपट पाषंड॥


उपर्युक्त पंक्तियाँ श्री रामचरितमानस से ली गयी हैं ||
इन कर्णप्रिय पंक्तियों में अत्यंत सरल हिंदी का प्रयोग किया गया है ||

गोस्वामी तुलसीदासजी ने गागर में सागर भरते हुए इन पंक्तियों में सारांश कह दिया है|

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